Ujjal Kumar Chaudhary, Director Investigation of Income Tax briefing mediapersons regarding raids conducted at 70 places of eight cities against former Chief Minister Jharkhand and Lok sabha, MP, Madhu Koda. The raids are going on against Madhu Koda his associates Vinod Kumar Sinha.
Ujjal Kumar Chaudhary, Director Investigation of Income Tax along with Income Tax sleuths coming from office to conduct raids at house of former Chief Minister Jharkhand and Lok sabha, MP, Madhu Koda.
Ujjal Kumar Chaudhary, Director Investigation of Income Tax along with Income Tax sleuths coming from office to conduct raids at house of former Chief Minister Jharkhand and Lok sabha, MP, Madhu Koda.
Jharkhand Mukti Morcha supremo Shibu Soren
The Puri-Hatia Tapasvini Express was held up for over five hours at the Bano station ,200 Kms from Ranchi
The passengers on board the Tapasvini Express from Puri-Hatia being happily welcomed by their friends and relatives at the Hatia Railway Station,Ranchi.
Maoist group had laid landmines on the track and detected timely by the CRPF,RPF. The train reached the Hatia station accompanied and escorted by security forces.
The Puri-Hatia Tapasvini Express was held up for over five hours at the Bano station ,200 Kms from Ranchi
Maoist group had laid landmines on the track and detected timely by the CRPF,RPF. The train reached the Hatia station accompanied and escorted by security forces.
The Puri-Hatia Tapasvini Express was held up for over five hours at the Bano station ,200 Kms from Ranchi
लोक आस्था का महापर्व छठ
यूं तो बिहार में सभी त्योहारों को मनाया जाता है लेकिन छठ का अपना अलग ही रंग और महत्व है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे प्रचलित त्योहार छठ सूर्य के उगते और डूबते दोनों स्वरुपों की उपासना का त्योहार है। दिवाली के छठे दिन मनाने की वजह से इसे छठ नाम दिया गया है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है और दूसरे दिन यानी सप्तमी को भी मनाया जाता है। चार दिनों का यह त्योहार आस्था और कठिन नियमों के साथ मनाया जाता है।
सूर्य उपासना की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। इस पर्व के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं कहा जाता है कि लंका विजय के बाद भगवान राम और सीता ने सूर्य षष्ठी के दिन पुत्र प्राप्ति के लिये सूर्य उपासना की थी। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य की आराधना की थी। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है जब द्रौपदी ने अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिये सूर्य उपासना की थी। एक प्रसंग यह भी है कि इसी दिन विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र का उच्चारण हुआ था।
सनातन धर्म के पांच प्रमुख देवताओं में सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान अर्घ्यदान के समय साधक अगर अंजली में जल रखकर सूर्याभिमुख होकर उस जल को भूमि पर गिराता है तो सूर्य की किरणें इस जल धारा को पार करते समय प्रिज्म प्रभाव से अनेक प्रकार की पराबैंगनी किरणें अवलोकित करती हैं। ये किरणें साधक के शरीर में जाने से उपचारी प्रभाव देती हैं।
इस पूजा के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं कि कोई भी सूर्य के प्रकोप से नहीं बच सकता। इसलिए छठ काफ़ी सावधानी से किया जाता है। ऐसा माना जाता है इस पर्व में मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं।
छठ पूजा दिवाली के चार दिन बाद चतुर्थ से शुरु होकर चार दिनों तक चलती है। इस पर्व में महिलाएं कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरु कर देती हैं। घर के सभी सदस्य इस पूजा में स्वच्छता का पूरा ध्यान रखते हैं। पूजा स्थल पर नहा-धोकर ही जाया जाता हैं और वहीं पर तीनों दिन निवास करने का भी रिवाज है।
पर्व के पहले दिन नहाय-खाय होता है। इस दिन व्रती महिलाएं जिन्हें बिहार में परवईतिन भी कहा जाता है अपने बाल धोकर अरवा चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और बाद मे सब लोग इसे प्रसाद के रुप में खाते हैं। व्रती देवकरी में पूजा का सारा सामान रखकर दूसरे दिन खरना की तैयारी में लग जाती हैं। देवकरी पूजा स्थल को कहते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखती हैं और घर की सफाई की जाती है। संध्या काल में मिट्टी के चूल्हा पर लकड़ी के ईंधन से पीतल के बर्तन में गुड़ का खीर और रोटी बनाती हैं। उसके बाद व्रती देवकरी में पूजा कर खीर-रोटी और फल खाती हैं जिसे में प्रसाद के रुप में लोगों को बांटा जाता है।
छठ के तीसरे दिन 24 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है और सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है। इस त्योहार में ठेकुआ(आटा और घी से बना) बनाना आवश्यक है। इस दिन पूजा के लिये बांस की टोकरी यानी दऊरा देवकरी में रखकर उसमें पूजा का समान रखते हैं। पूजा में चढाने के लिये सभी फल, ठेकुआ, कच्चा हल्दी, शकरकंद, सुथनी, बादाम, अखरोट और लाल कपड़ा रखा जाता है। इन सारे सामानों को सूप में रखकर उसमें दीप आलोकित करते हैं। नारियल को लाल कपड़े में ही लपेट कर रखा जाता है। शाम में सूर्यास्त से पहले घाट जाया जाता है। घर के पुरुष दऊरा लेकर घाट पर जाते हैं और पीछे से व्रती छठ का गीत गाते चलती हैं। व्रती घाट पर स्नान करती हैं और जल में अर्घ्य देने तक खड़ी रहती हैं। पुरुष भी इस व्रत को करते हैं। व्रती सूर्याभिमुख हो कर हाथ में सूप लेकर चारो दिशाओं की ओर परिक्रमा कर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं।
अगले दिन प्रातः काल फ़िर उसी अनुष्ठान का पालन करते हुए सूर्योदय के समय व्रती अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के उपरान्त घाट पर पूजा कर पहले व्रती प्रसाद खाती हैं और श्रद्धालुओं को प्रसाद बांटा जाता है। इस पूजा में प्रसाद माँगकर खाने का भी रिवाज है। पूजा के बाद सब लोग व्रती को प्रणाम करते हैं।
व्रती घर आकर चावल, कढ़ी और पकौड़ी से पारण करती हैं।
चार दिन तक चलने वाला यह व्रत सामुदायिक भावना को जाग्रत करता है और सह-अस्तित्व की बानगी भी पेश करता है।
सूर्य उपासना की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। इस पर्व के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं कहा जाता है कि लंका विजय के बाद भगवान राम और सीता ने सूर्य षष्ठी के दिन पुत्र प्राप्ति के लिये सूर्य उपासना की थी। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य की आराधना की थी। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है जब द्रौपदी ने अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिये सूर्य उपासना की थी। एक प्रसंग यह भी है कि इसी दिन विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र का उच्चारण हुआ था।
सनातन धर्म के पांच प्रमुख देवताओं में सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान अर्घ्यदान के समय साधक अगर अंजली में जल रखकर सूर्याभिमुख होकर उस जल को भूमि पर गिराता है तो सूर्य की किरणें इस जल धारा को पार करते समय प्रिज्म प्रभाव से अनेक प्रकार की पराबैंगनी किरणें अवलोकित करती हैं। ये किरणें साधक के शरीर में जाने से उपचारी प्रभाव देती हैं।
इस पूजा के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं कि कोई भी सूर्य के प्रकोप से नहीं बच सकता। इसलिए छठ काफ़ी सावधानी से किया जाता है। ऐसा माना जाता है इस पर्व में मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं।
छठ पूजा दिवाली के चार दिन बाद चतुर्थ से शुरु होकर चार दिनों तक चलती है। इस पर्व में महिलाएं कई दिन पहले से ही तैयारियां शुरु कर देती हैं। घर के सभी सदस्य इस पूजा में स्वच्छता का पूरा ध्यान रखते हैं। पूजा स्थल पर नहा-धोकर ही जाया जाता हैं और वहीं पर तीनों दिन निवास करने का भी रिवाज है।
पर्व के पहले दिन नहाय-खाय होता है। इस दिन व्रती महिलाएं जिन्हें बिहार में परवईतिन भी कहा जाता है अपने बाल धोकर अरवा चावल, लौकी और चने की दाल का भोजन करती हैं और बाद मे सब लोग इसे प्रसाद के रुप में खाते हैं। व्रती देवकरी में पूजा का सारा सामान रखकर दूसरे दिन खरना की तैयारी में लग जाती हैं। देवकरी पूजा स्थल को कहते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखती हैं और घर की सफाई की जाती है। संध्या काल में मिट्टी के चूल्हा पर लकड़ी के ईंधन से पीतल के बर्तन में गुड़ का खीर और रोटी बनाती हैं। उसके बाद व्रती देवकरी में पूजा कर खीर-रोटी और फल खाती हैं जिसे में प्रसाद के रुप में लोगों को बांटा जाता है।
छठ के तीसरे दिन 24 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है और सारे दिन पूजा की तैयारी की जाती है। इस त्योहार में ठेकुआ(आटा और घी से बना) बनाना आवश्यक है। इस दिन पूजा के लिये बांस की टोकरी यानी दऊरा देवकरी में रखकर उसमें पूजा का समान रखते हैं। पूजा में चढाने के लिये सभी फल, ठेकुआ, कच्चा हल्दी, शकरकंद, सुथनी, बादाम, अखरोट और लाल कपड़ा रखा जाता है। इन सारे सामानों को सूप में रखकर उसमें दीप आलोकित करते हैं। नारियल को लाल कपड़े में ही लपेट कर रखा जाता है। शाम में सूर्यास्त से पहले घाट जाया जाता है। घर के पुरुष दऊरा लेकर घाट पर जाते हैं और पीछे से व्रती छठ का गीत गाते चलती हैं। व्रती घाट पर स्नान करती हैं और जल में अर्घ्य देने तक खड़ी रहती हैं। पुरुष भी इस व्रत को करते हैं। व्रती सूर्याभिमुख हो कर हाथ में सूप लेकर चारो दिशाओं की ओर परिक्रमा कर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं।
अगले दिन प्रातः काल फ़िर उसी अनुष्ठान का पालन करते हुए सूर्योदय के समय व्रती अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के उपरान्त घाट पर पूजा कर पहले व्रती प्रसाद खाती हैं और श्रद्धालुओं को प्रसाद बांटा जाता है। इस पूजा में प्रसाद माँगकर खाने का भी रिवाज है। पूजा के बाद सब लोग व्रती को प्रणाम करते हैं।
व्रती घर आकर चावल, कढ़ी और पकौड़ी से पारण करती हैं।
चार दिन तक चलने वाला यह व्रत सामुदायिक भावना को जाग्रत करता है और सह-अस्तित्व की बानगी भी पेश करता है।
छ्ठ पर्व
दीपावली है खुशियों का रौशन त्योहार
दीपों का त्योहार दीपावली केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में किसी-न-किसी रुप में मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म के अलावा इस पर्व को सिख, बौध और जैन धर्म में भी हर्षोल्लास के साथ मनाते है। दिवाली के कई सप्ताह पहले से ही लोग अपने घरों, दुकानों की साफ-सफाई में लग जाते हैं। दिवाली स्वच्छ्ता और प्रकाश का पर्व है इसलिए लोग अपने घर की सफ़ाई कर दिवाली की रात रंग-बिरंगे बल्बों और दीपों से सजाते हैं।
इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि धन की लक्ष्मी अदभुत श्रृंगार करती हैं जिसकी चमक से पूरा संसार जगमगा उठता है। इस दिन घर की लक्ष्मी यानी गृहिणीयां सज-संवर कर बड़ों का आशीर्वाद लेकर पूजा करती हैं। ऐसा करने से घर में सुख-शान्ति आती है। ग्रिगेरियन कैलेण्डर के अनुसार यह पर्व अक्टूबर या नवम्बर महीने में मनाया जाता है। इस दिन रंगोली बनाने की भी परंपरा है।
दिवाली मनाने के पीछे कई कहानियां है। कहा जाता है जब चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर श्री राम अयोध्या आए तो अयोध्या वासियों ने उनके आने की खुशी मे घी के दिये जलाये थे। जैन धर्म के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी इसी दिन है। सिखों के लिये भी यह पर्व महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दिवाली के दिन ही हुआ था। उन्होंने दीपावली के दिन गंगा तट पर स्नान करते समय ओम कहते हुए समाधि ले ली थी। भारतीय संस्कृति के महान जननायक महर्षी दयानंद ने दिवाली के दिन ही अजमेर के निकट अवसान लिया था। उन्होनें आर्य समाज की स्थापना की थी। बादशाह जहांगीर भी दिवाली धूमधाम से मनाते थे। शाह आलम द्वितीय के समय समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था। लाल क़िले में आयोजित कार्यक्रमों मे हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफ़र भी इसे मनाते थे। दीन- ए- इलाही के प्रवर्तक अकबर के शासनकाल में भी इस त्योहार को मनाया जाता था।
रोशनी के त्योहार दीपावली में बाजार में तरह-तरह के पटाखे मिलते हैं। आजकल बाजारों में दीपावली की सजावट के लिये टेराकोटा, सेन्टेड, फ़्लोटिंग दीप और जेल कैन्डल मिलते हैं। कलात्मक ढंग से बने भगवान गणेश की मूर्तियां भी लोगो को लुभाती हैं। फिल्म रिलीज के लिए दिवाली सबसे शुभ मुहूर्त माना जाता है। एक साथ चार- पांच फ़िल्में रिलीज की जाती है। दिवाली की रात जमकर आतिशबाज़ी की जाती है। इस दिन लोग मिठाइयों का भी खूब मजा लेते हैं। अंधकार पर प्रकाश के विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है।
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