धनतेरस की परम्परा


धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले त्रयोदशी को मनाया जाता है । इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धनवन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस के दिन नये बर्तन और घरेलू सामानों को खरीदने की परंपरा है।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार धनवन्तरी देवताओ के भी वैद्य माने जाते हैं। स्वास्थय और लम्बी आयु के बाद धन की बात आती है इसलिए इसे दिवाली के दो दिन पहले मनाने की प्रथा है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन यम का दीप घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर जलाने से अकाल म्रृत्यु नहीं होती है। कहीं-कहीं लोक मान्यता है कि धनिया के बीज को इस दिन खरीद कर दिवाली के बाद बाग-बगीचो मे लगाने से पैदावार में वृद्धि होती है।

इस प्रथा के पीछे एक लोक-कथा भी है एक समय की बात है कि हेम नाम के राजा को एक देव कृपा से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उसकी कुन्डली में योग था कि उसका विवाह अगर हुआ तो विवाह के चार दिन बाद हई उसकी मृत्यु निश्चित है। इस डर से राजा हेम ने उसे ऐसी जगह भेज दिया जहां स्त्रियो की परछाई भी नही पहुँच पाए पर अचानक ही एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उनहोंने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के ठीक चार दिन बाद जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जाने लगे तो उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय द्रवित हो गया। उसी समय यमदूत ने यमराज से पूछा कि महाराज अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है तो बताएं। तब यमराज ने बताया कि जो व्यक्ति कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष मे त्रयोदशी के दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दिया जलाने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल सकती है।

धनतेरस ने अब नया रुप ले लिया है लोग इस दिन को शुभ मानकर अपनी जेब के हिसाब से खरीददारी करते है। इस दिन झाड़ू खरीदने की भी परंपरा है। आजकल लोग धनतेरस के दिन सोने चांदी से लेकर जरुरत का सामान, घर और गाड़ी तक खरीदने लगे हैं ।

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